ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सभी नवग्रह (सूर्य, शनि, शुक्र, ब्रहस्पति, चंद्रमा, बुध, मंगल, राहू और केतु) जातक की कुंडली में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव दिखाते है। यह निर्भर करता है जातक की लग्न कुंडली में कि कौन सा ग्रह कौन से भाव में बैठा है।
जातक की कुंडली में यह ग्रह दोष उन्हें शारीरिक, मानसिक और आर्थिक सभी प्रकार से कष्ट देते है। इसके निवारण हेतु नवग्रह शांति की पाठ-पूजा का विधान है।
(DOSH TYPES):
सूर्य दोष (SUN DEFECTS):
सूर्य ग्रह उर्जा का प्रतीक है और साथ ही यह जातक को समाज में मान-सम्मान और यश की प्राप्ति कराता है। जिस जातक की कुंडली में सूर्य ग्रह सही स्थिति में बैठा हो उसका शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा रहता है। ऐसा व्यक्ति शरीर से हष्ट-पुष्ट और बलवान होता है। इसके विपरीत जिस जातक की कुंडली में सूर्यदोष हो वह सदा बीमारी से परेशान रहता है। ऐसा संभव है कि ऐसा व्यक्ति किसी असाध्य रोग की गिरफ्त में आ जाये। सूर्य ग्रह का नकारात्मक प्रभाव आपकी नौकरी में भी अड़चन का कारण बन सकता है।
चन्द्र दोष (MOON DEFECTS):
हिन्दू धरम में चन्द्रमा को चन्द्र देव कहा गया है। चन्द्र देव को सोम के नाम भी पुकारा जाता है। लग्न कुंडली में चन्द्र दोष होने पर जातक पेट संबंधी रोगों से परेशान रहता है और मानसिक व्याधियां भी होने की सम्भावना बढ़ जाती है। ऐसे जातक के बिना वजह ही शत्रु बनने लग जाते है। व्यापार में धन की हानि होने लगती है।
मंगल दोष (MARS DEFECTS):
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंगल ग्रह को विनाशकारी माना गया है। कुंडली में मंगल ग्रह के नीच स्थान में होने पर मांगलिक दोष होता है। लग्न कुंडली में पहले, चौथे, सातवें, आठवें और बारवे वे भाव के से किसी भी स्थान पर मंगल ग्रह होने पर मांगलिक दोष बनता है। जिसका सीधा प्रभाव जातक के वैवाहिक जीवन पर और संतान संबंधी सुख पर पड़ता है।
बुध ग्रह दोष (MERCURY DEFECTS):
आपकी कुंडली में बुध ग्रह का अशुभ प्रभाव आपको व्यापार , दलाली और नौकरी में हानि पहुँचा सकता है। बोलने की शक्ति में तुतलाहट आना बुध ग्रह/grah का नीच भाव में आने के कारण ही होता है। बुध ग्रह के अशुभ प्रभाव दोस्तों से मित्रता में खटास का कारण बन सकते है। यहाँ तक की आपकी बहन , बुआ या मौसी का किसी भारी मुशीबत में आना बुध ग्रह के नीच भाव में होने के कारण ही होता है।
गुरु ग्रह दोष (JUPITER DEFECTS):
सामान्यतः गुरु ग्रह शुभ फल ही देता है किन्तु यदि गुरु ग्रह किसी पापी ग्रह/grah के साथ विराजमान हो जाये तो कभी कभी अशुभ संकेत भी देने लगता है। गुरु दोष होने पर जातक विवाह व अपने भाग्य से संबधी परेशानियों का सामना करता है। कुंडली में गुरु दोष शारीरिक , मानसिक व आर्थिक सभी प्रकार से कष्ट देता है।
शुक्र ग्रह दोष (VENUS DEFECTS):
शुक्र ग्रह को पति-पत्नी , प्रेम संबंध, एश्वर्य और आनंद आदि का कारक ग्रह माना गया है। जिस जातक की कुंडली में शुक्र ग्रह की स्थिति अच्छी हो वह अपना सम्पूर्ण जीवन प्रेम , एश्वर्य और आनंद से बिताता है। ऐसे जातक का दाम्पत्य जीवन भी प्रेम व आनंद से परिपूर्ण रहता है। कुंडली में शुक्र ग्रह के कमजोर होने पर जातक मूत्र संबंधी विकार , नेत्र रोग , गुप्तेन्द्रिय , सुजाक , रक्त प्रदर, प्रमेह और पांडू रोग से पीड़ित हो सकता है। शुक्र ग्रह/grah की कमजोर स्थिति आपके वैवाहिक जीवन में कलह का कारण बन सकती है।
शनि ग्रह दोष (SATURN DEFECTS):
शनि ग्रह जिसे शनिदेव भी कहा गया है। हिन्दू धर्म में शनिदेव आपके द्वारा किये गये कर्मो का फल प्रदान करने वाले है। जातक की कुंडली में शनि की क्रूर द्रष्टि(शनि दोष ) उसके सम्पूर्ण जीवन को तहस-नहस कर सकती है। यहाँ तक की लग्न कुंडली के पहले भाव में शनि का होना जातक की मृत्यु का कारण भी बन सकता है।
राहु दोष (RAHU DOSH):
राहु और केतु दोनों को छाया ग्रह माना गया है। यद्यपि ये स्वत्रंत रूप से अपने प्रभाव नहीं दिखाते है। ये दोनों ग्रह जिस भी ग्रह के साथ होते है उसी के अनुरूप फल प्रदान करते है। ऐसा नहीं है कि राहू और केतु हमेशा ही अशुभ फल प्रदान करते है। जब राहू कुंडली के तीसरे, छटे और ग्यारहवे भाव में हो तो शुभ फल प्रदान करते है(Rahu Dosh Nivaran Upay)। राहु और केतु अगर किसी जातक की कुंडली में दशा और महादशा हो तो जातक के लिए यह काफी कष्टकारक होता है। आज हम आपको राहु ग्रह की दशा और महादशा को शांत करने के उपायों के विषय में जानकारी देने वाले है।
केतु दोष (KETU DOSH):
केतु भी राहु की भांति ही एक छाया ग्रह हैं तथा मनुष्य के शरीर में केतु मुख्य रूप से अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। ज्योतिष की गणनाओं के लिए केतु को ज्योतिषियों का एक वर्ग तटस्थ अथवा नपुंसक ग्रह मानता है जबकि ज्योतिषियों का एक दूसरा वर्ग इन्हें नर ग्रह मानता है। केतु स्वभाव से मंगल की भांति ही एक क्रूर ग्रह हैं तथा मंगल के प्रतिनिधित्व में आने वाले कई क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व केतु भी करते हैं।
अनिष्टकारी तथा कुप्रभाव से बचने हेतु जातक द्वारा इस पूजन का प्रावधान है।